ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा
क़ाफिला साथ और सफ़र तन्हा
अपने साये से चौंक जाते हैं
उम्र गुज़री है इस क़दर तन्हा
रात भर बोलते हैं सन्नाटे
रात काटे कोई किधर तन्हा
दिन गुज़रता नहीं है लोगों में
रात होती नहीं बसर तन्हा
हमने दरवाज़े तक तो देखा था
फिर न जाने गए किधर तन्हा
ज़िन्दगी क्या है जानने के लिए
जिंदा रहना बहुत ज़रूरी है
आज तक कोई भी रहा तो नहीं
सब पे आती है, सबकी बारी से
मौत मुंसिफ है, कम-ओ-बेश नहीं
ज़िन्दगी सब पे क्यूँ नहीं आती
सामने आया मेरे, देखा भी, बात भी की
मुस्कुराए भी किसी पहचान की खातिर
कल का अखबार था, बस देख लिया, रख भी दिया
इतने लोगों में, कह दो अपनी आंखों से
इतना ऊँचा न ऐसे बोला करें
लोग मेरा नाम जान जाते हैं
चौदहवें चाँद को फिर आग लगी है देखो
फिर बहुत देर तलक आज उजाला होगा
राख हो जाएगा जब फिर से अमावस होगी ....
Thankyou for reading ❤️❤️❤️
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