Gulzar Poems | Gulzar Poetry in Hindi | Gulzar Poetry on Love | Gulzar Poems in Hindi - theloveslang - Karnarty





ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा
क़ाफिला साथ और सफ़र तन्हा


अपने साये से चौंक जाते हैं
उम्र गुज़री है इस क़दर तन्हा


रात भर बोलते हैं सन्नाटे
रात काटे कोई किधर तन्हा


दिन गुज़रता नहीं है लोगों में
रात होती नहीं बसर तन्हा


हमने दरवाज़े तक तो देखा था
फिर न जाने गए किधर तन्हा


ज़िन्दगी क्या है जानने के लिए
जिंदा रहना बहुत ज़रूरी है


आज तक कोई भी रहा तो नहीं


सब पे आती है, सबकी बारी से
मौत मुंसिफ है, कम-ओ-बेश नहीं


ज़िन्दगी सब पे क्यूँ नहीं आती


सामने आया मेरे, देखा भी, बात भी की
मुस्कुराए भी किसी पहचान की खातिर


कल का अखबार था, बस देख लिया, रख भी दिया


इतने लोगों में, कह दो अपनी आंखों से
इतना ऊँचा न ऐसे बोला करें


लोग मेरा नाम जान जाते हैं


चौदहवें चाँद को फिर आग लगी है देखो
फिर बहुत देर तलक आज उजाला होगा


राख हो जाएगा जब फिर से अमावस होगी ....



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